*यज्ञ शुभारंभ के लिए सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि : आचार्य विशाल मणि भट्ट*

फोटो : श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे 11 दिवासीय महारुद्र यज्ञ शुभारंभ के लिए अरणी मंथन पद्धति से साधु संतों और पंडितों के सान्निध्य में अग्नि उत्पन्न करते श्रद्धालु।
(रिपोर्ट@ईश्वर शुक्ला)
ऋषिकेश/उत्तराखंड भास्कर – सोमेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य आचार्य विशाल मणि भट्ट ने कहा कि यज्ञ शुभारंभ के लिए सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि। यज्ञ के द्वारा ही ईश्वर की उपासना करते हैं। यज्ञ में आहुति के लिए अग्रि की आवश्यकता होती है। अग्रि व्यापक है लेकिन यज्ञ के निमित्त उसे प्रकट करने के लिए भारत में वैदिक पद्धति है जिसे अरणी मंथन कहते हैं।
आधुनिक युग में माचिस से लेकर गैस लाइटर होने के बाद भी यज्ञ शुभारंभ के लिए शास्त्रों में बताई गई सदियों पुरानी पद्धति से ही अग्नि को उत्पन्न किया जाता है। गंगानगर स्थित श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे 11 दिवासीय महारूद्र यज्ञ में भी साधु संतों और पंडितों ने अरणी मंथन पद्धति से अग्नि उत्पन्न कर यज्ञ शुरू किया। वह महारुद्र यज्ञ के शुभारंभ पर यज्ञ के लिए अग्नि प्रकट करने की वैदिक पद्धतियों को लेकर चर्चा कर रहे थे। कैसे होती है यज्ञ के लिए अग्नि उत्पन्न : मुख्य आचार्य विशाल मणि भट्ट ने बताया कि भारत में शास्त्रों में तीन प्रकार की अग्नि से यज्ञ का शुभारंभ किया जा सकता है। इनमें सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि।
● अरणी मंथन…
शमी (खेजड़ी) के वृक्ष में जब पीपल उग आता है। शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया। यज्ञ के द्वारा भगवान की स्तुति करते हैं अग्नि का स्वरूप है शमी और नारायण का स्वरूप पीपल, इसी वृक्ष से अरणी मंथन काष्ठ बनता है। उसमें अग्रि विद्यमान होती है, ऐसा हमारे शास्त्रों में उल्लेख है। इसके बाद अग्रि मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्रि को प्रकट करते हैं।
● गोष्ठ की अग्नि…
अब लोगों को इसका ज्ञान नहीं है, पहले प्रत्येक गोष्ठ (गोशाला) में अखंड अग्नि प्रज्ज्वलित रहती थी। उसमें नित्य धूप दिया जाता है। उस धूप से गाय को पीड़ा पहुंचाने वाले कीटाणु सहित आसुरी शक्तियों का नाश होता था। वहां की अग्नि को भी यज्ञ के लिए उपयोग में लिया जा सकता है।
● आदित्याग्नि…
सूर्य से उत्पन्न अग्नि: इसके लिए आचार्य ने उदाहरण देते हुए बताया कि हम जब छोटे बच्चे थे तो बुआ या दादीजी का मोटा चश्मा लेकर कभी सूर्य की किरणों के आगे कर कर नीचे कागज या कंडी रखते थे। सूर्य की किरणें उस पर पड़ते-पड़ते अग्नि प्रकट हो जाती थी। इसे आदित्याग्रि कहते हैं। इसका भी यज्ञ में उपयोग हो सकता है।
● ऐसे प्रज्ज्वलित होती है अग्नि…
शमी की लकड़ी का एक तख्ता होता है जिसमें एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह तेजी से चलाया जाता है। इससे तख्ते में चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, जिसे नीचे रखी घास व रूई में लेकर उसे हवा देकर बढ़ाया जाता है। इसी अग्रि का यज्ञ में उपयोग किया जाता है। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहते हैं।