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*त्रेता युग में राम राज्य के स्थापना के साथ प्रारंभ हुई छठ पूजा, भगवान श्री राम और माता सीता ने छठ व्रत रखकर सूर्य देव से लिया था आशीर्वाद, देश-विदेश के साथ ऋषिकेश में भी प्रसिद्ध हुई छठ पूजा महोत्सव, 5 से 8 नवंबर तक चलेगा छठ पूजा कार्यक्रम*

 

(रिपोर्ट@ईश्वर शुक्ला)
ऋषिकेश/उत्तराखंड भास्कर- देश के विभिन्न कोनों में मनाए जाने वाली छठ पूजा महोत्सव का रंग तीर्थनगरी में भी चढ़ने लगा है। कई वर्षों से नगर की हृदय स्थल कहीं जाने वाली त्रिवेणी घाट पर भव्य रूप से छठ पूजा महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया जाता आ रहा है जबकि शहर के अन्य कई गंगा घाटों जैसे स्वर्ग आश्रम स्वामीनारायण आश्रम घाट वीरभद्र आदी घाटों पर भी देखने को मिलती हैं।

छठ पूजा की तैयारी को लेकर शहर में अभी से रौनक दिखाई देने लगी है जगह-जगह छठ पूजा महोत्सव के कार्यक्रमों को लेकर तैयारियां भी की जा रही हैं। जानिए आखिर क्यों मनाई जाती है छठ पूजा, कार्तिक मास की शुक्ल पष्टि को सूर्य साधना का महापर्व छठ पूजा के रूप में मनाया जाता है। जब कोई पर्व सूर्य उदय के साथ-साथ जीवन के उदय का प्रतीक हो जाए तो वह हमारे जीवन में महोत्सव बन जाता है व्रत की तेजस्विता के साथ सूर्य की ऊर्जस्विता मिले तो छठ कहते हैं।

 

                                                                

मान्यता है कि त्रेतायुग में राम राज्य की स्थापना के साथ छठ पूजा का प्रारंभ हुआ इसका उल्लेख प्राचीन धर्म ग्रंथो में पाया जाता है एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल पष्टि के दिन भगवान श्री राम और माता सीता ने व्रत रखकर भगवान सूर्य देव की आराधना की और सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्य देव से आशीर्वाद लिया था तभी से छठ पूजा का विशेष महत्व है इस व्रत और पूजा का वर्णन विष्णु पुराण देवी पुराण बछावैवर्त पुराण आदि धर्म ग्रंथो में मिलता है।

द्वापर युग के महाभारत काल में कर्ण ने सूर्य देव की पूजा प्रारंभ की और सूर्य की कृपा से महान योद्धा बने तभी से अर्द्ध दान की परंपरा स्थापित हुई। इसी काल खंड में पांडवों की पत्नी द्रोपती ने सूर्य की पूजा अपने प्रिय जनों की उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए प्रारंभ की थी सूर्य की उपासना भी लोग अपने रीति रिवाज से करते हैं सिर्फ उगता सूर्य ही छठ में पूज्य नहीं बल्कि डूबता सूर्य भी अर्ध्य देने के योग्य है।

सुख और दुख दोनों ही परिस्थितियों में साथ रहने का संकल्प इससे आध्यात्मिक और क्या हो सकता है बगैर कठिन शास्त्रीय भाषा में समझे व समझाएं सूर्य के प्रतिक से जीवन की हर परिस्थिति के योग बनाने का उपक्रम छठ है। इस वर्ष चार दिवसीय छठ पूजा मंगलवार 5 नवंबर को चतुर्थी नहाए खाए, बुधवार 6 नवंबर को पंचमी खरना, गुरुवार 7 नवंबर को शंध्या कलिंन कालीन सूर्य अर्घ्य और शुक्रवार 8 नवंबर को सुबह सूर्य अर्ध्य छठ पूजा व्रत का पारण।

बता दें कि इस पर्व में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है पष्टि तिथि को सादीव्रती नदी तालाब नहर किनारे एकत्रित होकर लोग अपने गीत संगीत व संस्कृति के साथ अस्ताचल गामी भगवान सूर्य देव को अर्ध्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं। अस्त और उदय होते सूर्य की आराधना यानी छठ पूजा व्रत की परंपरा भारत में बिहार पूर्वांचल से प्रारंभ होकर संपूर्ण हिंदुस्तान और विश्व में विस्तारित हो चुकी है। सूर्य को शक्ति का देवता माना जाता है और इसकी आराधना पूजा हिंदू धर्म में काफी महत्व रखती है छठ के मौके पर देश भर में प्रमुख मेले लगते हैं उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में देवालय मेला अति प्रसिद्ध है। यह भी मान्यता है कि छठ देवी सूर्य भगवान की बहन है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन में सूर्य और जल की सर्वाधिक महत्व मानते हुए सूर्य की आराधना पूजा पवित्र जल में खड़े होकर की जाती है।

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