Blogउत्तराखंड भास्करऋषिकेशखास खबरदेहरादून

*त्रेता युग में राम राज्य की स्थापना के साथ हुआ छठ पूजा का शुभारंभ, अपनी ऊष्मा और ऊर्जा से पूरी सृष्टि को अनुप्रमाणित करने वाले प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना का पर्व है छठ, यह सूर्य के प्रतीक से जीवन को हर परिस्थिति के योग्य बनाने का है उपक्रम*

(संपादक डिंपल शुक्ला)
 ऋषिकेश। उत्तराखंड भास्कर- कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष को सूर्य साधना का महापर्व छठ पूजा को प्राचीन काल से मनाने की परंपरा अनवरत चली आ रही है । दीपावली के बाद छठ का आना महापर्व की उपस्थिति है । जब कोई पर्व सूर्य उदय के साथ-साथ जीवन के उदय का प्रतीक हो जाए तो वह हमारे जीवन में महोत्सव बन जाता है। व्रत की तेजस्विता के साथ सूर्य की उर्जस्विता  मिले तो छठ कहते हैं ।
 त्रेता युग में राम राज्य की स्थापना के साथ छठ पूजा का प्रारंभ हुआ इसका उल्लेख प्राचीन धर्म ग्रंथो में पाया जाता है एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल पष्ठी के दिन भगवान श्री राम और माता सीता ने व्रत रखकर सूर्य देव की आराधना की और सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्य देव से आशीर्वाद लिया था।  तभी से छठ पूजा का विशेष महत्व है इस व्रत और पूजा की चर्चा विष्णु पुराण देवी पुराण वछावैवर्त पुराण आदि प्राचीन धर्म ग्रंथो में विस्तार से की गई है । द्वापर युग में महाभारत काल में करने सूर्य देव की पूजा प्रारंभ की और सूर्य देव की कृपा से वह महान योद्धा बने तभी से शाम को डूबते सूर्य और सुबह के उगते हुए सूर्य को अर्ग देने की परंपरा स्थापित हुई । इसी कालखंड में पांडवों की पत्नी द्रोपती ने सूर्य की पूजा अपने प्रियजनों की उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए प्रारंभ की थीब  सूर्य की उपासना भी लोग अपने रीति-रीवाज से करते हैं । सिर्फ उगता सूर्य ही छठ में पूजने योग्य नहीं बल्कि डूबता सूर्य भी अर्ग के योग्य होता है।  सुख और दुख दोनों ही परिस्थितियों में साथ रहने का संकल्प इससे अध्यात्म और क्या हो सकता है। बगैर कठिन शास्त्रीय भाषा में समझे व समझाएं सूर्य के प्रतीक से जीवन के हर परिस्थिति के योग बनने का उपक्रम छठ है। हमने सूर्य को अर्ग जल में रहकर जल देने की परंपरा डाली इस वर्ष चार दिवसीय छठ पूजा पर्व का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को यानी शुक्रवार 17 नवम्बर सूर्य षष्ठी का व्रत का प्रथम संयम, 18 नवम्बर  सूर्य षष्ठी का व्रत का द्वितीय संयम, 19 नवम्बर सूर्य षष्ठी व्रत (डाला छठ), 20 नवम्बर सूर्य षष्ठी का व्रत प्रातः अर्ग देने के बाद का पारन के साथ होगा समापन ।
इस पर्व में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है पष्ठी तिथि को सावित्री नदी गंगा नदी नहर के किनारे एकत्रित होकर लोग अपने गीत संगीत व संस्कृति के साथ अस्ताचलागमी भगवान सूर्य देव को अर्ग देकर व्रत को पूर्ण करते हैं ।
अस्त और उदय होते सूर्य की आराधना यानी छठ पूजा व्रत की परंपरा भारत में बिहार पूर्वांचल झारखंड नेपाल और तराई क्षेत्र से प्रारंभ होकर संपूर्ण भारतवर्ष और विश्व विस्तरित हो चुकी है । सूर्य को शक्ति का देवता माना जाता है और इनकी आराधना पूजा हिंदू धर्म में काफी महत्व रखती है । छठ पर्व पर आधारित अस्मिता रखती पष्ठी की पूर्णिमा तक देश भर में प्रमुख मेले लगते हैं छठ पर ऋषिकेश की त्रिवेणी घाट दुल्हन की तरह सजी रहती है और मुनि की रेती स्थित श्री स्वामीनारायण घाट दयानंद घाट जानकी झूला स्वर्ग आश्रम बैराज आदि प्रमुख जगहों पर छठ पर्व पर पूजा करते हैं ।
 यह भी मान्यता है की छठ देवी सूर्य भगवान की बहन है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन में सूर्य को जल की सर्वाधिक महत्व को मानते हुए सूर्य की आराधना पूजा पवित्र जल में खड़े होकर की जाती है ।

Related Articles

Back to top button