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*ऋषिकेश में “योगनृत्ये ब्रह्मसंवादः” का शुभारंभ, योग और नृत्य साधना का अद्भुत संगम, वैदिक संस्कृति कला केन्द्र द्वारा 27 से 31 अक्टूबर तक पाँच दिवसीय आवासीय कार्यशाला*

 

ऋषिकेश/हरिद्वार। वैदिक संस्कृति कला केन्द्र, ऋषिकेश द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय आवासीय नृत्य कार्यशाला “योगनृत्ये ब्रह्मसंवादः” का शुभारंभ सोमवार 27 अक्टूबर से किया जा रहा है। यह कार्यशाला भारतीय शास्त्रीय नृत्य और योग की गहन साधना को एक सूत्र में जोड़ते हुए साधकों को आत्मानुभूति और सृजनशीलता की दिशा में प्रेरित करेगी यह जानकारी हरिद्वार प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता के दौरान दी।

कला केवल प्रदर्शन नहीं, साधना और आत्मा की अभिव्यक्ति है : आचार्य प्रसन्न 

संस्थान के संस्थापक आचार्य प्रसन्न ने बताया कि वैदिक संस्कृति कला केन्द्र भारतीय जीवन के उस शाश्वत दृष्टिकोण को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास कर रहा है, जहाँ कला केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि साधना और आत्मा की अभिव्यक्ति बन जाती है।
इस आयोजन में भरतनाट्यम और कथक की नृत्य शैलियों के माध्यम से योग, ध्यान, संगीत और नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों का अनुभवात्मक अभ्यास कराया जाएगा।

योग, प्राणायाम, संगीत और गंगा आरती के साथ आत्मिक यात्रा

कार्यशाला की संयोजिका डॉ. स्मृति वाघेला ने बताया कि इस आवासीय आयोजन के दौरान प्रतिदिन

  • योग, प्राणायाम एवं ध्यान सत्र
  • श्रीमद्भगवद्गीता आधारित संवाद
  • ध्वनि चिकित्सा ध्यान
  • नृत्य रचनाओं और संगीत का अध्ययन
  • ताल, लय और सृजनशीलता पर विशेष कार्यशालाएँ
    के साथ-साथ हरिनाम संकीर्तन, प्रभात फेरी और गंगा आरती जैसी आध्यात्मिक गतिविधियाँ आयोजित होंगी।
  • प्रख्यात गुरुजनों की उपस्थिति से सजेगा आयोजन

इस कार्यक्रम में पद्मश्री शोवना नारायण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रो. महेश चंपकलाल सहित अनेक प्रतिष्ठित गुरुजन और विद्वान सत्र संचालित करेंगे। उनके मार्गदर्शन से प्रतिभागियों को भारतीय कला की जड़ों से जुड़ने और उसमें नई चेतना का संचार करने का अवसर मिलेगा।

नृत्य योगमय बनकर ब्रह्म की अनुभूति का माध्यम बने”  : आचार्य अंकित

संस्थान के संरक्षक आचार्य अंकित ने कहा कि वैदिक संस्कृति कला केन्द्र का उद्देश्य भारत की वैदिक एवं कलात्मक परंपराओं का संरक्षण, संवर्धन और प्रसार करते हुए उन्हें आधुनिक समाज से जोड़ना है।
यह आयोजन उसी दिशा में एक सशक्त कदम है, जहाँ नृत्य योगमय साधना बनकर ब्रह्म की अनुभूति का माध्यम बनता है।

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